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|| राम जी की दूसरी आरती ||

आरती कीजे श्रीरामलला की । पूण निपुण धनुवेद कला की ।।

धनुष वान कर सोहत नीके । शोभा कोटि मदन मद फीके ।।

सुभग सिंहासन आप बिराजैं । वाम भाग वैदेही राजैं ।।

कर जोरे रिपुहन हनुमाना । भरत लखन सेवत बिधि नाना ।।

शिव अज नारद गुन गन गावैं । निगम नेति कह पार न पावैं ।।

नाम प्रभाव सकल जग जानैं । शेष महेश गनेस बखानैं

भगत कामतरु पूरणकामा । दया क्षमा करुना गुन धामा ।।

सुग्रीवहुँ को कपिपति कीन्हा । राज विभीषन को प्रभु दीन्हा ।।

खेल खेल महु सिंधु बधाये । लोक सकल अनुपम यश छाये ।।

दुर्गम गढ़ लंका पति मारे । सुर नर मुनि सबके भय टारे ।।

देवन थापि सुजस विस्तारे । कोटिक दीन मलीन उधारे ।।

कपि केवट खग निसचर केरे । करि करुना दुःख दोष निवेरे ।।

देत सदा दासन्ह को माना । जगतपूज भे कपि हनुमाना ।।

आरत दीन सदा सत्कारे । तिहुपुर होत राम जयकारे ।।

कौसल्यादि सकल महतारी । दशरथ आदि भगत प्रभु झारी ।।

सुर नर मुनि प्रभु गुन गन गाई । आरति करत बहुत सुख पाई ।।

धूप दीप चन्दन नैवेदा । मन दृढ़ करि नहि कवनव भेदा ।।

राम लला की आरती गावै । राम कृपा अभिमत फल पावै ।।

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